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Sunday, December 31, 2017

****** नव वर्ष-2018 : शुभकामना गीत ******

नव वर्ष-2018
 शुभकामना गीत 
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वर्ष  पुरानक   विदा  लेल  नव  वर्ष  आबि  अछि   ठाढ़
नव   संकल्पक   हेतु   आयल  जे   देबा   लेल   हकार

नव   वर्षक   एहि  आमंत्रण  केँ   हम   सहर्ष  स्वीकारी
चली प्रगति केर पथ पर कखनहु हिम्मत नहि हम हारी

अछि  महत्व समयक सबसँ बढ़ि जे अछि परम अमोल
समयक   सोझां  हीरा   मोती   सोना  केर   नहि  मोल

तेँ   नव   वर्षक   पल  पल   केर   उर्जा  मे   क’  स्नान
पेबा  लेल  सफलता  सब  तरि  चलबी  नव  अभियान

भेल  अतीतक  गलती  पर  हम  पुनि-पुनि करी विचार
करी  निरंतर  हम  भविष्य  मे  जहि हित सदति सुधार

जाति   धर्म  ओ  सम्प्रदाय  मे  राखी  नहि  हम  अंतर
मानव   छी   मानवता   केर   पूजक  बनि  रही निरंतर

कखनहु  ककरो  प्रति  मनमे  नहि  राखी  कनियो  द्वेष
हम   नित   करी   प्रयत्न   परस्पर  मेटय  हेतु   कलेश

जहि  सँ  हो  सम्पूर्ण  विश्व  मे  जन  जन  केर  कल्याण
एक   दोसरा  केर  प्रति  मन  मे  रहय  सदति  सम्मान

‘तरुण’क  सदति  प्रार्थना  प्रभुसँ  हो  नव  वर्ष निरामय
सबके  हित  नव  वर्ष  ‘अठारह’  हो सुखकर मंगलमय ।
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Tuesday, May 16, 2017

तीन टा गीत

ई तीनू गीत एकहि श्रृंखलामे लिखल गेल छैक । देशक वर्तमान स्थिति आ भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्थाक प्रति घोर चिंताक बादो एहि श्रृंखलाक गीत मे उमेद बाँचल छै - उमेद जे कालचक्र सब दिन एकहि रंग नहि रहतै, स्थिति बदलतै । एहि तीनू गीतक प्रकाशन ‘देसिल बयना’, हैदराबादक मई2017 अंक (स्मारिका)  मे भेल छैक ।


[1.] 

कहुना के हासिल हो सत्ता

एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता
निष्कंटक हो राज सुरक्षित रहय हमर सब किछु अलबत्ता ।

बुद्धिक ठेकेदार स्वयं बनि सदति मंचसँ दी हम भाषण
नैतिकता केँ राखि ताक पर बैसि ल’ झूठक हम आसन
पाबि सकी जहिसँ दिल्ली संगहि पटना लखनउ कलकत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

अपन दोख सब झाँपि सदति हम अनकर दोख उघारय चाही
हमर विरोधी हो खाहें क्यो सबकेर ओधि उखाड़य चाही
भीतर बरू फोंक हो सब किछु ऊपर सँ मोटगर हो गत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

कतहु कही हम देशक सेवक कतहु स्वयं केँ कही सिपाही
आनक जे उपलब्धि कोनो हो तकर मानि नहि देबय चाही
देशक हित नित बात करी हम कर्म क्षेत्रसँ रही निपत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता । 

जँ किछु जनता केँ देबा हित दोसर क्यो दै अछि आश्वासन
तँ ओकरोसँ आगू बढ़ि हम कही देब मुफ्ते मे राशन
संगहि रहबा ल’ मकान आ पहिरे हित सब कपड़ा लत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

पैघ-पैघ जे लोक तकर हम सदिखन माथ झुकाबय चाही
अपना दल केर लेल नुकौआ मोटगर राशिक करी उगाही
करी जोगाड़ सदति निज पद हित वेतन सँ भरिगर हो भत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

हमर चरित्रक लेखा-जोखा जानि सकत कहियो दोसर की
हमरा आगू मे हमरा सँ दोसर कहू बनत सेसर की
आनक खेल बिगाड़ै खातिर डगर बाट हम कोड़ी खत्ता
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।
***

[2.] 

कोना परस्पर प्रेम उमड़तै

जानी नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै
झूठक सघन अन्हरिया बीतत, सत्यक सुरूज क्षितिज पर उगतै ।

मानव अछि मानव केर दुश्मन, दानवता सब पर भारी अछि
ऊपर सँ जे गोर भुभुक्का, भीतर सँ ओतबै कारी अछि
जानी नहि दानवतारूपी, साँप कखन बिअरि मे ढुकतै
जानि नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै।

जे सब चोर उचक्का लंपट, वैह आइ संतक बाना मे
धर्मक बाट चलय जे चाहै, पकड़ि बन्हाबे ओ थाना मे
जानि नहि जे अनाचार केर, कहिया धरि तांडव ई चलतै
जानि नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै ।

अल्ला ओ भगवानो लागय, लोकक डर सँ जेना पड़ायल
मंदिर-मस्जिद केर झगड़ा मे, देशक राजनीति ओझड़ायल
जानि नहि एहि चक्रव्यूह सँ, कहिया धरि ई देश उबरतै
जानि नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै ।

जाति धर्म ओ सम्प्रदाय मे, कहिया धरि हम रहब बँटायल
अपन सहोदर के हाथें कि होइत रहब एहिना हम घायल
आबहु मिलि हम तरुण विचारी, कोना परस्पर प्रेम उमड़तै
जानि नहि ई देश हमर जे आइ कतय धरि जा क’ रुकतै ।
***

[3.] 

कालचक्र ई एक रंग नहि

कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै
परिस्थिति खाहें जे किछु हो आइ नहि काल्हि बदलतै।

सदति होइत ने रहतै एहिना स्वार्थक नांगट नाच
हारत फूसि एक दिन पाओत विजय अवश्ये  साँच
होयत पापक अंत चतुर्दिक धर्मक ध्वजा फहरतै
कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै ।

रहय  ध्यान  ई  सदति आस  केर दीप जरौने राखी
मिटा  सकी  अस्तित्व  ओकर हम, जे मानवताघाती
दानवता  केर  मकड़जाल  सब तखनहि जाय उजड़तै
कालचक्र ई एक रंग नहि, सब दिन चलिते रहतै ।

जनता केर शोषक जे तकरा हम चिह्नित क’ पाबी
संगहि  प्रतिगामी  सत्ता  जे तकरा  दूर  भगाबी
रची एहेन इतिहास जाहि सँ देशक भाल चमकतै
कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै ।

प्रजातंत्र अछि देश जतय जनता सबसँ बलशाली
जनते केर बल पर निर्भर अछि फगुआ-ईद-दीवाली
देशक जनता जागि उठय तँ क्रांतिक लहरि उमड़तय
कालचक्र ई एक रंग नहि, सब दिन चलिते रहतै ।

रातिक बादे दिन होइत अछि चिर शाश्वत संदेश
पतझड़ केर बादे बसंत केर भू पर होइछ  प्रवेश
तरुण तिमिर दुख केर मेटत आ सुख केर किरण छिटकतै
कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै ।
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Monday, March 20, 2017

भारती मंडन'क पहिल नवांक लोकार्पित

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पहिल नवांकक प्रकाशनमे अपेक्षासँ बहुत बेसी विलम्ब भेल मुदा ‘भारती मंडन’क लोकार्पणक संक्षिप्त रिपोर्ट अहाँ सबसँ सझिया करैत अत्यंत प्रसन्नताक अनुभव भ’ रहल अछि । हमरा लेल ई आत्मिक संतोषक विषय थिक जे ‘भारती मंडन’ आब पाठक लोकनिक हाथमे पहुँचि चुकल अछि । आशा अछि डाक आ अन्य माध्यमसँ ई जल्दिये अपन समस्त पाठक धरि पहुँचि सकत ।
प्रकाशनमे आर्थिक रचनात्मक वा कोनो तरहें, जे कियो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग केलनि, हुनका सबहक प्रति हम आभार व्यक्त करैत छी । ‘भारती मंडन’क प्रकाशन अहीं सबहक सहयोगसँ संभव होइत रहल अछि । आग्रह जे अपन सहयोग एहिना बनेने राखी । 
- तारानन्द झा 'तरुण'
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मैथिली पत्रिका ‘भारती मंडन’क पहिल नवांकक लोकार्पण सम्पन्न
प्रस्तुति : अखिल आनंद

19.03.2017(रवि दिन)  
मैथिलीक बहुआयामी लेखनक पत्रिका ‘भारती मंडन’क पहिल नवांकक लोकार्पण आइ पटनाक बिहार रिसर्च सोसाइटी सभागार मे मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार पं. गोविन्द झाक हाथें सम्पन्न भेल । दूपहर दू बजेसँ शुरू भेल एहि समारोहक अध्यक्षता साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित साहित्यकार मंत्रेश्वर झा केलनि ।

‘भारती मंडन’ पत्रिकाक प्रकाशन सुपौल जिलाक एकटा छोट गाम मलाढ़ सँ वर्ष 1995 मे शुरू भेल छल आ किछु अपरिहार्य कारणेँ 2006 मे बन्न भ’ गेल छल । केदार काननक संपादनमे एहि अवधिमे प्रकाशित भेल पत्रिकाक कुल बारहो अंकक मैथिली जगतमे खूब स्वागत भेल छल आ एकर मूल्यांकन महत्वक काजक रूपमे कएल जाइत रहल अछि । लगभग एक दशककक बाद एहि पत्रिकाकेँ फेरसँ प्रकाशित करबाक लेल गेल निर्णयक उपरांत एकर पहिल नवांकक लोकार्पण केँ मैथिली जगत लेल उत्साहक खबरि कहल जा सकैत अछि । 
 एहि अवसर पर मैथिली पत्रिका आ भारती मंडन विषय पर एक गोट परिचर्चाक आयोजन कएल गेल जाहिमे सुकान्त सोम, विकास कुमार झा, शरदिन्दु चौधरी, रमानंद झा रमण, कथाकार अशोक आ धीरेन्द्रमोहन झा अपन विचार व्यक्त केलनि ।
परिचर्चाक बाद एकटा कवि सम्मेलनक आयोजन सेहो कएल गेल जाहिमे तारानंद वियोगी, तारानंद झा ‘तरुण’, रघुनाथ मुखिया, कामिनी, धीरेन्द्र कुमार झा, जगदीशचन्द्र ठाकुर आ वैद्यनाथ मिश्र कविता पाठ केलनि ।
कार्यक्रमक आरंभ मे पत्रिकाक संस्थापक-सह-प्रबंधक तारानन्द झा ‘तरुण’ आगत विद्वत लोकनिक स्वागतक संगहि पत्रिकाक पुनर्प्रकाशनक निमित्त भावनात्मक वक्तव्य देलनि । एहि कार्यक्रमक संचालन युवा लेखक पत्रकार किशोर केशव केलनि । कार्यक्रमक समापन पत्रिकाक सहायक सम्पादक अखिल आनंदक धन्यवाद ज्ञापन सँ भेल । आइये एकटा कार्यक्रम मे ‘भारती मंडन’ कलकत्ताक मैथिल सभक बीच सेहो लोकार्पित भेल ।
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Wednesday, January 4, 2017

नव वर्षक शुभकामना आ किछु आवश्यक समाद

दिन-दिन निघटि बंधुवर क्रमशः सोलह भेल व्यतीत 
वर्तमान छल जे कहियो से सम्प्रति भेल अतीत ।
नव नव किछु संदेश संग ल' सत्रह आबि तुलायल
लागय शिशिर गेल हो धरती पर बसंत जनु आयल ।।
ली संकल्प आइ ई मन मे राखि अटल विश्वास
आगू बढी सफल जीवन हित प्रतिपल करी प्रयास ।
एहि मंगलमय बेला मे अछि हमर ढेर शुभकाम
सदति पूर्ण हो बंधु अहाँके चिर संचित मनकाम ।।

आदरणीय बंधु लोकनि, सादर नमस्कार । वर्ष 2017क पदार्पणक संगहि, समय अपन पुरान केंचुआक छोड़ि, नव स्वरुप ग्रहण केलक अछि । जेना धरतीक कण-कण मे, एकटा नव उर्जाक संचार भेल हो । आबी, हमरो लोकनि, ओहि उर्जाक सदुपयोग क’, मैथिलीक उन्नयनक लेल किछु एहेन करी, जाहि सँ हमरा लोकनिक वर्तमान, भविष्य मे चलि, एकटा एहेन इतिहास गढ़य, जे अविस्मरणीय हो ।

भाय, हम क्षमाप्रार्थी छी, एहि लेल, जे वर्ष 2016क पूर्वार्ध मे, 'भारती मंडन'क प्रकाशनक हित लेल गेल संकल्प, एहि वर्षक उत्तरार्धक समाप्तियो धरि प्रकाशनक बाट तकिते रहि गेल, ओना एहि लेल दोषी के, एकर निर्णय करब कठिन अछि । मैथिली साहित्यक अनेकानेक मूर्धन्य विद्वान, आब हमरा लोकनिक बीचसँ चलि बसल छथि । आजुक नवतुर मे अपन मातृभाषाक प्रति अनुरागक अभावक कारणें मैथिलीमे नव प्रतिभाक अंकुरण सम्प्रति अल्पप्राय अछि । एहेन स्थिति मे 'भारती मंडन'क स्तरक निर्वहन करबामे तदनरूप रचनाक अभाव, जीबाक लेल जीविकाक निर्वहन, संपादकक समयाभाव, संगहि विगत मे पंचायत चुनाव आ 8 नबंबर 2016 सँ नोटबंदीक संक्रमण काल, सब मिलि केँ ‘भारती मंडन’क प्रकाशनक अवधि केँ आगूक दिस ठेलैत गेल । 

मुदा आब अधिक नहि, फरवरी 2017 मे आयोजित होमय जा रहल पटनाक मैथिली लिट्रेचर फेस्टिवलक अवसर पर सुनिश्चित रूपसँ 'भारती मंडन'क विमोचन होयत, से अपना दिस सँ समस्त मैथिली साहित्यानुरागी बंधुकेँ आश्वस्त करैत छी । ताहि संगहि मैथिल युवा रचनाकार लोकनि सँ निवेदन, जे ओ लोकनि संकल्प लेथि जे विश्व साहित्यक अध्ययन ओ चिंतनक संगहि, अपन संस्कृति ओ सभ्यताक संतुलन राखि साहित्यक संरचना दिस उन्मुख होथि, जाहिसँ भविष्यमे पुरोधा साहित्यकार लोकनिक अभावक पूर्ति संभव भ' सकय ।  एहि लेल 'भारती मंडन'क 'अबैत लोक' स्तम्भक लेल अपने लोकनिक रचनाक प्रतीक्षा रहत । ताबत एतबै ।

अपने लोकनिक स्नेह आ सहयोगक आकांक्षी
तारानन्द झा ‘तरुण’
संस्थापक-सह-प्रबंधक
'भारती-मंडन'
कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ़

Sunday, May 15, 2016

‘भारती मंडन’क पुनर्प्रकाशनक सन्दर्भ मे

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पछिला दस बरखमे कोनो एहन दिन नहि रहल होयत जहिया हमरा मनमे पत्रिकाकेँ पुनर्प्रकाशित करबाक विचार नहि आयल हुअए । मुदा पुनर्प्रकाशनक निर्णय धरि पहुँचि सकबा लेल जेहन परिस्थिति हेबाक चाही रहए से एहि वर्ष 2016क शुरूआतमे बनि  सकल । एहि निर्णयसँ अहाँ सबकेँ अवगत काराबैत बहुत प्रसन्नता भ’ रहल अछि ।

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भारती मंडनक पुनर्प्रकाशनक सन्दर्भ मे
 तारानन्द झा तरुण

परिस्थिति किछु तेहन बनि गेल छलैक जे दस बरख पहिने हमरा सबकेँ मैथिलीक बहुआयामी लेखनक पत्रिका भारती मंडनक प्रकाशन स्थगित करबाक निर्णय लेबए पड़ल छल । ताबत धरि एहि पत्रिकाक बारहटा अंक प्रकाशित भेल छलैक । पत्रिकाक बारहोटा अंक पाठक, रचनाकार आ विद्वान लोकनिक बीच पर्याप्त सराहल गेल छल । पत्रिकाक बन्न भेलाक बाद जे बेचैनी हमरा सब महसूस करैत छलहुँ, ताहूसँ बेसी बेचैनी मैथिली-प्रेमी पाठक, रचनाकार आ विद्वान लोकनिकेँ भेल छलन्हि । चिट्ठी, फोन आ व्यक्तिगत संवादक माध्यमे एहि आशय केर अनेको प्रतिक्रिया भेटैत रहल जे पत्रिकाक प्रकाशन बन्न होयबाक सूचनासँ कतेको मैथिली-प्रेमी आहत छथि । पछिला दस बरखमे कोनो एहन दिन नहि रहल होयत जहिया हमरा मनमे पत्रिकाकेँ पुनर्प्रकाशित करबाक विचार नहि आयल हुअए । मुदा पुनर्प्रकाशनक निर्णय धरि पहुँचि सकबा लेल जेहन परिस्थिति हेबाक चाही रहए से एहि वर्ष 2016क शुरूआतमे बनि सकल । एहि निर्णयसँ अहाँ सबकेँ अवगत काराबैत बहुत प्रसन्नता भरहल अछि ।

मिथिला मिहिरक प्रकाशन बन्न भेलाक बादसँ मैथिली पत्र-पत्रिकाक क्षेत्रमे एकटा पैघ रिक्तता आबि गेल छलैक । एहि रिक्तताकेँ भरबाक उद्देश्यसँ वर्ष 1995क पूर्वार्धमे हमरा सब भारती मंडनक प्रकाशनक संकल्प लेने छलहुँ । पत्रिकाक प्रवेशांक सितम्बर’1995मे बहरायल छल । पत्रिकाक प्रस्तावना त्रैमासिकक रूपमे कएल गेल छलैक, मुदा प्रकाशनक क्रममे ई कहियो सावधिक नहि रहि सकलैक । सुपौल सनक छोट जगहसँ, साधन आ अर्थक अभावमे पत्रिकाक प्रकाशनक काज सुगम नहि छलैक । तखनहुँ हमरा सबहक प्रयास रहैत छल जे बरख भरिमे पत्रिकाक कमसँ कम दुओटा अंक प्रकाशित कसकी । लेटर प्रेससँ कम्प्यूटर प्रेस धरि यात्रा करैत भारती मंडनक बारह अंकक अलावा यात्रीजीपर केन्द्रित संस्मरण पुस्तिका तुमि चिर सारथीआ प्रभाष चैधरीपर केन्द्रित पुस्तिकाक प्रकाशन अतिरिक्तांकक रूपमे सेहो भेल छलैक । पत्रिकाकेँ रजिस्टर्ड करेबाक प्रयासक क्रममे पत्रिकाक एकटा अंक मंडन निकेतक नामसँ सेहो बहरायल छल । हम सब प्रतिबद्ध छलहुँ जे पत्रिकामे सामग्रीक गुणवत्तासँ कोनो समझौता नहि करबाक अछि । विभिन्न स्तम्भ मे बाँटल गेल पत्रिकामे मुदा नवागत रचनाकारो लेल पर्याप्त जगह राखल गेल छलैक । साधनक अभाव आ विक्रयक खराब स्थितिक अछैतो पत्रिकाक वितरणक स्थिति तेहन छलैक जे आइ पत्रिकाक पुरान अंक सब प्रायः अनुपलब्ध अछि ।

भारती मंडनक पाछाँ प्रबंधनक कोनो टीम वा पूँजी नहि छलैक । नीक विज्ञापनक जोगाड़ आ सरकारी संस्था सबसँ वित्तीय सहयोगक आस नहि लगायल जा सकैत छल । एहन परिस्थितिमे मैथिली-प्रेमी बन्धु लोकनिसँ भेटल आर्थिक सहयोगे एहि पत्रिकाक प्रकाशनक आधार छल । सदस्यताक योजनाकेँ व्यक्तिगत विज्ञापनसँ जोड़बाक विचार एहने परिस्थितिमे हमरा मनमे आयल छल । लोकक सहयोग जुटायब बड्ड कठिन काज होइत छै, मुदा ततबहु नहि जे निराश भजेबाक चाही । कतेको लोक एहनो भेटलाह जे अपनहि अन्तःप्रेरणासँ पत्रिकाकेँ आर्थिक सम्बल देबा लेल आगाँ एलाह । प्रकाशनक क्रममे प्रत्येक अंक लेल प्रायः मात्र जनसहयोगेक बलेँ उपलब्ध होयबला आर्थिक आधारक मादे हम कमसँ कम ई कहि सकबाक स्थितिमे छी जे पत्रिकाक प्रकाशनकेँ स्थगित करबाक निर्णयक पाछाँ आर्थिक अभाव कतहुसँ मुख्य कारण नहि छलैक ।

छौमाही पत्रिकाक रूपमे भारती मंडनक पुनर्प्रकाशनक निर्णय लेबाक हिम्मति, हमरा सब जनसहयोगेकेँ वित्तीय आधारक रूपमे ध्यानमे राखैत लेल अछि । एतए ई फरिछा देब आवश्यक बुझना जाइछ जे पत्रिकाक पुरान सदस्यता सहित सदस्यताक पूर्वक सब योजना निरस्त कदेल गेल अछि । ई निर्णय एहि सद्भावनाक संग कएल गेल अछि जे रचनात्मक सामग्रीमे कटौती आ विज्ञापन सामग्री केर बहुत बेसी भारसँ पत्रिका के बचाओल जा सकए । सदस्य लोकनिकेँ सदस्यताक रसीद देबाक क्रममे ई बता देल जाइत छलन्हि जे हुनक सहयोग राशिक एवजमे व्यक्तिगत विज्ञापन देल जेतन्हि आ शेष कोनो सुविधाकेँ भारती-मंडनपरिवारक सप्रेम भेंट बूझल जाए । आशा अछि जे एहि निर्णयकेँ जरूरी बूझि अपने सब सहयोग करब ।

एहि बेर पत्रिकाक सुचारु प्रकाशन लेल दू तरहक सहयोगक योजनाक प्रस्ताव राखल गेल अछि । पहिल योजना थिक वित्त सम्पोषक रूपमे सहयोगक जाहिमे एक अंक लेल एक मुश्त 5000/- टाकाक सहयोग राशि निर्धारित कएल गेल अछि । सक्षम लोक वित्त सम्पोषकक रूपमे आगाँ एताह से आशा अछि । एहि योजनाक अन्तर्गत वित्त सम्पोषकक फोटो आ विस्तृत परिचय पत्रिकाक एक पूरा पृष्ठमे देल जाओत । वित्त सम्पोषककेँ ओहि अंक केर दू प्रति भेंट कएल जेतन्हि जाहि अंकमे ओ सहयोग करताह आ एकर अतिरिक्त पत्रिकाक आगामी नौ अंकक एक-एक प्रति हुनका नियमित रूपें भेटैत रहतैन्ह ।

दोसर योजना वित्तीय सहभागीक रूपमे सहयोगक अछि । सहयोगक एहि योजनामे एक अंक लेल कमसँ कम 500/- टाकाक सहयोगक अपेक्षा कएल जाइत अछि । एहि योजनाक अन्तर्गत वित्तीय सहयोगीक सूचीमे नाम आ संक्षिप्त परिचय प्रकाशित कएल जेतन्हि । वित्तीय सहभागीकेँ ओहि अंकक दू प्रति भेंट कएल जेतन्हि जाहिमे ओ सहयोग करताह आ एकर अतिरिक्त पत्रिकाक आगामी एक अंकक एक प्रति हुनका सेहो भेटतन्हि ।

जँ एहि तरहक सहयोग प्रत्येक अंक लेल नियमित रूपेँ भेटि सकय तँ पत्रिकाक नियमित प्रकाशन लेल ई एकटा पैघ स्थायी आधार होयत । मुदा जँ ई सहयोग लगातार नहि रहितो बेर-बेर, एकाधिक बेर वा एकहि अंक धरि भेटय तखनो ई कम महत्वक नहि होयत । आशा अछि जे अपने सबहक सहयोग पूर्ववत भेटैत रहत ।

लागत मूल्य अपेक्षाकृत बेसी रहबाक अनुमान बादो हमरा सब ई निर्णय कयल अछि जे एखन एक प्रतिक मूल्य 50/- टाकासँ बेसी नहि राखल जाय । सामन्य पाठकक लेल एक मात्र सदस्यता योजनाक रूपमे वार्षिक (दू अंकीय) सदस्यताक प्रावधान सेहो राखल गेल अछि । एहि निमित्त्त 150/- टाका (डाक खर्च सहित) निर्धारित कयल गेल अछि ।

पत्रिकाक प्रकाशनक संकल्पक संगहि कल्पना केने छलहुँ जे मसिजीवी रचनाकार लोकनिकेँ मानदेय देबाक स्थितिमे आबि सकी । पत्रिकाक बारह अंक धरि ई संभव नहि भसकल छल । हमरा उमेद अछि जे सक्षम लोकक सहयोगक बलें हम सब शीघ्रे एहू स्थितिमे आबि सकब ।

पत्रिकाक पुनर्प्रकाशनक उद्देश्य बहुत स्पष्ट अछि आ ओ अछि मैथिली भाषा आ साहित्यक उन्नयन आ प्रसारमे महत्वपूर्ण योगदान देब । केदार काननक सम्पादनमे ई पत्रिका एहने भूमिकाक निर्वाह करत से हमरा आशा अछि । एहने भूमिकाक खगतो छैक । हमरा विश्वास अछि जे मैथिलीमे रचनाशीलता आ पठनीयताक संकटकेँ कम करबामे ई पत्रिका महत्वपूर्ण योगदान दसकत । जँ कोनो तरहक बाधा उपस्थित नहि होए तँ पुनर्प्रकाशनक निर्णयक बादक पहिल अंक जून-जुलाई-2016 धरि अहाँ सबहक हाथमे होयत ।

आशा अछि अपने सबहक रचनात्मक आ आर्थिक सहयोग नियमित रूपें भेटैत रहत । वित्तीय सहयोग प्रबन्धकीय पतापर आ रचनात्मक सहयोग सम्पादकीय पतापर पठाओल जा सकैत अछि । सुविधा लेल क्रमशः दुनू पता नीचा उपलब्ध कराओल जा रहल अछि । जय मैथिली ।

प्रबंधकीय सम्पर्क : तारानन्द झा ‘तरुण’, संस्थापक-सह-प्रबंधक ‘भारती मंडन’, तरुण निकेतन मलाढ़, ग्राम +पत्रालय-मलाढ़, वाया - थरबिट्टा, जिला- सुपौल, बिहार- 852138,मो.- 09006292627, 09507633641



सम्पादकीय सम्पर्क : केदार कानन, सम्पादक ‘भारती मंडन’, किसुन कुटीर, सुपौल, बिहार- 852131, मो.- 09471062706, 07542043991

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(मलाढ़ / 31.04.2016)
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 पुनश्च : आवश्यक समाद 
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मैथिलीक साहित्यानुरागी बंधु आ भारती-मंडन पत्रिकाक किछु अनन्य शुभचिंतक लोकनिक सुझावक आधार पर पत्रिकाक सदस्यता सम्बंधी नियममे किछु अवधि पूर्वसँ बदलाव कएल गेल छैक । एहि सम्बंधमे कोनो जानकारी लेल सीधे प्रबंधक सँ सम्पर्क कएल जा सकैत अछि । पत्रिकाक प्रकाशनमे भ' रहल बिल्मबक समबंधमे कोनो जिज्ञासा होइ तँ एहि मादे लिखल गेल ब्लॉग पोस्ट पढ़ी से आग्रह ।

Friday, October 2, 2015

बापू केर स्वप्नक भारत केर निर्माण करी

आउ आबहु बापू केर स्वप्नक भारत केर निर्माण करी 
सबहक संग परस्पर मिलि जुलि स्नेहक हम प्रतिदान करी ।
जाति धर्म भाषा विवाद केँ फरिछा केँ उकनाबी हम / निज भारत देशक अखंडता केँ मिलि आउ बचावी हम
देलनि जे सब केँ स्वतंत्रता हुनकर हम सम्मान करी
आउ आबहु बापू केर स्वप्नक भारत केर निर्माण करी ।

मानी बात ओकर नहि कहियो झगड़ा सदति लगावय जे/ आनक हर्जा देखि देखि केँ मनहि हँसय मुस्कावय जे
बूझि केँ ओकरा नेहक शत्रु चौकन्ना ई कान धरी
आउ आबहु बापू केर स्वप्नक भारत केर निर्माण करी !

हिंसा घृणा द्वेष सँ सगिरो मात्रहि होइछ विनाश तरुण / न्याय आर शांतिक बिनु कहियौ कतय उगैछ समृद्धिक अरुण?
सत्य,अहिंसा, प्रेम, शांति लेल जिनगी अपन प्रदान करी
आउ आबहु बापू केर स्वप्नक भारत केर निर्माण करी !

जे अछि दुखित दीन अवहेलित सब केँ हृदय लगावी हम/ सत्यक आग्रह करी सुनिश्चित  किनको हक भेटय नहि कम
हम कर्तव्यक पाठ नहि बिसरी स्वार्थक हम बलिदान करी
 आउ आबहु बापू केर स्वप्नक भारत केर निर्माण करी !




[06.07.1986/मलाढ़ ]
रेखा चित्र साभार : mkgandhi.org

Tuesday, August 25, 2015

‘भारती-मंडन’ पत्रिकाक प्रकाशनक प्रस्तावना

भारती-मंडन पत्रिकाक प्रकाशनक प्रस्तावनाक मूल मे पत्रिकाक स्वरूपक कल्पनाक संगहि एहि पत्रिकाक नियमित प्रकाशनक लेल आर्थिक जुटानक योजना केँ सार्वजनिक केनय रहल छल । एहि प्रस्तावनाक संगहि भारती-मंडनक प्रकाशनक जतन व्यावहारिक रूपें शुरू भेल छल । पत्रिकाक संस्थापक-सह-प्रबंधक तारानंद झा ‘तरुण’ एकर उपरांते निरंतर लोकक सहयोग लेल झोड़ा टांगि, साइकल हँकैत कोसक कोस जा क’ व्यक्तिगत भेट करवाक संगहि औसतन सैकड़ा-अधसैकड़ाक हिसावें प्रायः नित्य पत्र लिखव शुरू केलन्हि । 
         मैथिली पत्रिका लेल सहयोगक जुटान कतेक कठिन काज होइछ, एहि बातक अनुमान वैह लगा सकैत छथि, जिनका एहि मादे किछुओ टा अनुभव होइन्ह । पत्रिकाक प्रबंधक लग पूँजीक नाम पर किछुओ ने छलन्हि । पत्रिकाकक प्रकाशन अवधि (1995-2006) वा तकर बहुत बादो धरि पारिवारिक कारणें कर्ज मे डूबल रहलाह । मुदा पत्रिकाक एक अंकक प्रकाशन आ वितरणक औसतन पच्चीस हजार लगभग खर्चक जोगाड़ ओ लोकक सहयोग सँ करैत रहलाह । पत्रिकाक सुचारू प्रकाशन लेल कएक तरहक सदस्यता योजना हुनके संकल्पना थिक । प्रकाशनक एहि जतन मे घनघोर अनुरोध, दुत्कार, अपमान, मान, अनादर, आदर आ सहयोग-असहयोगक कतेको घटना निहित अछि । ई क्रम पत्रिकाक 12 अंक धरि चलैत रहल, जकर बाद पत्रिकाक प्रकाशन संभव नहि भ’ सकल । 
        एहु बातक उल्लेख आवश्यक अछि जे पत्रिकाक संपादक केदार काननक लेल सेहो ई अवधि घोर आर्थिक संघर्षक छल । एना रहितो रचनाक संशोधन संयोजन सँ ल’ ’ लेटर प्रेसक छपल कॉपी केर प्रूफ देखवा धरि हुनक मेहनति आ समर्पण अद्बुत छल । एहि तरहें अपन-अपन आर्थिक अभावक बावज़ूद पत्रिकाक दू प्रमुख खाम्ह पत्रिका क ठाढ़ क’ ऊँच राखवा मे निष्ठा सँ लागल रहलाह ।
एहि प्रस्तावनाक ‘भारती-मंडन’ पत्रिकाक प्रकाशनक इतिहास मे पर्याप्त महत्व छैक । समय समय पर एहि ब्लॉग पर पत्रिकाक प्रबंधकीय दस्तावेज सब केँ भूमिका सहित उपलब्ध करेवाक प्रयास रहत । जाहि सँ ‘भारती-मंडन’ सन महत्वक पत्रिकाक लेल प्रबंधकीय संघर्षक सेहो परिचय भेटि सकय, जे पत्रिका मात्र देखि क’ बूझव कठिन अछि ।
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Thursday, May 14, 2015

आगि ओ मिझैत की

रेखांकन : कुमार सौरभ
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आगि ओ मिझैत की जे घर-घर मे धधकल अछि
बाँचत की जान ओ जे फँसरी पर लटकल अछि ।

अपनहि सँ कुड़हरि ल’ टांग अपन काटि रहल
ककरा बुझाओत के बुद्धि सबहक सटकल अछि ।

एकहु बताहक इलाज भेनय मोश्किल सन
की होयत दुनिया केर सब केर सब सनकल अछि ।

गौतम आ गाँधीक आदर्शक जाप करैत
छगुंता एहि देशहु मे हिंसेटा भरकल अछि ।

आयुध केर ढेर पर  दुनिया ई बमकि रहल

होइछ नित युद्ध लोक युद्धे मे परिकल अछि ।



[मलाढ़ : 26.07.1984 /  देसिल बयना, हैदराबाद द्वारा 10 मई 2015 केँ आयोजित मिथिला विभूति पर्वकअवसर पर बहरायल स्मारिका मे प्रकाशित ।]